Madhu varma

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लेखनी कविता -हुस्न का जादू जगाए - फ़िराक़ गोरखपुरी

हुस्न का जादू जगाए / फ़िराक़ गोरखपुरी

हुस्न का जादू जगाए इक ज़माना हो गया.
ऐ सुकूते१-शामे-ग़म फिर छेड़ उन आँखों की बात.

ज़िन्दगी को ज़िन्दगी करना कोई आसाँ न था.
हज़्म करके ज़हर को करना पड़ा आबे-हयात.

जा मिली है मौत से आज आदमी की बेहिसी२.
जाग ऐ सुबहे-क़यामत३,उठ अब ऐ दर्दे-हयात.

कुछ हुआ,कुछ भी नहीं और यूँ तो सब कुछ हो गया.
मानी-ए-बेलफ्ज़ है ऐ दोस्त दिल की वारदात.

तेरी बातें हैं कि नग्में तेरे नग्में है सहर४.
ज़ेब५ देते हैं 'फ़िराक़'औरों को कब ये कुफ्रियात६.

१. चुप्पी २. जड़ता ३. प्रलय की सुबह
४. जादू ५. शोभा ६. अधर्म

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